Friday, March 11, 2011

जाला

 छुपा कर रखा था मन में कुछ सवालों को ,
 सहेज कर रखा था कुछ उलझे ख्यालों को , 
 लगता है बस थमी सी चल चलती है जिंदगी 
                                                 सालों से  ,
 कयूं मकड़ी सी उलझी लगती है अपने ही 
                                                 जालों में ?
 ये जाल अपने ख्यालों से जो हमने बुना है  ,
 कई सवाल जिनमे खुद को बे वजह ही फंसा रखा है |
 न जाने , कब वो दिवाली आएगी ?
 जब कोई पाक रूह ये जाला हटाएगी....
 अपनी ही कैद में फंसी जब ये जिंदगी , 
 खुले पंछीकी तरह बेख़ौफ़ हवा में गोते लगाएगी |

 

3 comments:

  1. yahi ek aas liye na jane kitna jee leta hai aadmi...
    bahut pyaaree rachna...

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  2. @Pooja ji: bahut dhanywaad padhne ke liye. dimaag ki udhade bun ko kuch shabdon me bunne ki ek koshish ki hai.

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  3. artistic and classic !!होली की शुभकामनायें !!

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