छुपा कर रखा था मन में कुछ सवालों को ,
सहेज कर रखा था कुछ उलझे ख्यालों को ,
लगता है बस थमी सी चल चलती है जिंदगी
सालों से ,
कयूं मकड़ी सी उलझी लगती है अपने ही
जालों में ?
ये जाल अपने ख्यालों से जो हमने बुना है ,
न जाने , कब वो दिवाली आएगी ?
जब कोई पाक रूह ये जाला हटाएगी....
अपनी ही कैद में फंसी जब ये जिंदगी ,
खुले पंछीकी तरह बेख़ौफ़ हवा में गोते लगाएगी |
yahi ek aas liye na jane kitna jee leta hai aadmi...
ReplyDeletebahut pyaaree rachna...
@Pooja ji: bahut dhanywaad padhne ke liye. dimaag ki udhade bun ko kuch shabdon me bunne ki ek koshish ki hai.
ReplyDeleteartistic and classic !!होली की शुभकामनायें !!
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