Tuesday, September 7, 2010

दो टूक

उजड़ा  मेरा आशियाना
ना कोई रहा  ठिकाना
ऐ मेरे खुदा ..............

गुजरा वो था ज़माना
जब अपना भी था इक ठिकाना ,
ज़लज़ला ऐसा आया ,
 आंधी ऐसी चली,
पंच्छी गिरा डाली से...
आशियाँ उड़ा ले साथ चली ........
ऐ मेरे खुदा ..............

कर रहमत अपने बन्दों पर ,
न जर न जेवर , न रहा कोई घर
कोई खता हुई मुझसे जो गर
ऐ मेरे खुदा ................

बीवी की आँखें हैं नम,
दिल में लिए सिसकता इक गम ,
भूख से मासूम रहे हैं बिलख ,
मै हूँ बेजार और बेबस ,
क्या करूँ ,किस से लडूं
तू ही तो है जिस से फ़रियाद  करूँ,
ऐ मेरे खुदा .....................

बंदा क्या लाया थे ,जो खोएगा
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जब होग्री तेरी रहमत
तू अपने आप ही देगा |
ऐ मेरे खुदा ...............

क्या चाहिए मुझ गरीब को ,
मेरे बिखरे नसीब को,
इक छोटी  सी दुनिया ,
जिसमे हो  इक अपनी छत
दो टूक रोटी, दो पल चैन |
समझ मेरा भी दर्द.......कर कुछ मेरी मदद .
ऐ मेरे खुदा .....................

3 comments:

  1. Thoughts came flowing to my mind while I was looking at Pakistan flood victims photos and I was so much moved by the misery they are undergoing and this is one of them.

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  2. Compassion for Suffering of Humankind

    Does NOT KNOW ANY

    BOUNDARIES.

    True words from the HEART of a Kind HUMAN BEING

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  3. again a good work.... super like.... :)

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