छुटकी चल दी ..............................
माँ की उंगली , पिता का साथ लिए
भीड़ में वो आगे बढ़ ली ..............
क्या रोशनी ,क्या चहल -पहल ,
क्या रंग , नज़ारे अलग - अलग ,
हैरान हो ये सब छुटकी देखन लगी |
माँ ! ये गुडिया , बाबा ! ये झूला
मुझे भी है लेना ..........................
ना बेटी ! ये न किसी काम का,
फिर कभी ले लेना.........................
चलो , फिर कभी इस गुडिया से
मै खेलूंगी .......................................
अगली बार ही सही , कोई बात नहीं
मै ये झूला ले लूंगी |
रुको माँ ,इसे पकड़ कर तो मै
देख लूँ .................................
बाक़ी बच्चों को झूला लेते देख ही
मै ऑंखें सेक लूँ ....................
मन में ये सोच छुटकी बोली यूं ,
कोई बात नहीं , माँ -बाबा मै
बड़ी सयानी हूँ ..................
जब अगली बार आप के खेत फसल
अच्छी होगी ,
तब ये गुडिया भी मेरी होगी |
इतना कह छुटकी आगे मेले में बढ़ दी ,
और माँ -बाबा की ऑंखें आंसू से भर दी ,
क्यों दिखाई रंगीन दुनिया इतनी.................
ये भोली "लाडो" को..................................
जो इतनी जल्दी गयी वो सयानी हो |
फिर छुटकी रंग -बिरंगी दुनिया के मेले
में ग़ुम हो गयी......................................
आगे बढ़ चली वो भीड़ में ,
मन में सपने संजोये कई ...................
इक दिन जरूर वो गुडिया मुझे
bahut sundar ..........manbhavan
ReplyDeletewah bahut khoob ....
ReplyDeletenice expression... can visualize... :)
ReplyDeletenice novel for our people. i like it
ReplyDeleteTop Best Schools Of Kanpur