Monday, October 18, 2010

मेला

रंगबिरंगी दुनिया का मेला देखन 
छुटकी चल दी ..............................
माँ की उंगली , पिता का साथ लिए 
भीड़ में वो आगे बढ़  ली ..............
क्या रोशनी ,क्या चहल -पहल ,
क्या रंग , नज़ारे  अलग - अलग ,
हैरान  हो ये सब छुटकी   देखन  लगी  |

माँ ! ये गुडिया , बाबा ! ये झूला 
मुझे भी है लेना ..........................
ना  बेटी ! ये न किसी काम का, 
फिर कभी ले लेना.........................
चलो , फिर कभी इस  गुडिया से 
मै खेलूंगी .......................................
अगली बार ही सही , कोई बात नहीं 
मै ये झूला ले लूंगी |

रुको माँ ,इसे  पकड़  कर तो मै 
देख लूँ ................................. 
बाक़ी  बच्चों को झूला लेते देख ही 
मै ऑंखें  सेक लूँ ....................
मन में  ये सोच छुटकी बोली यूं ,
कोई बात नहीं , माँ -बाबा  मै 
बड़ी सयानी हूँ .................. 
जब अगली बार  आप  के खेत फसल 
अच्छी होगी , 
तब ये गुडिया भी मेरी होगी  |

इतना कह छुटकी आगे  मेले में  बढ़ दी ,
और माँ -बाबा  की  ऑंखें  आंसू से भर दी ,
क्यों दिखाई  रंगीन दुनिया इतनी.................
ये भोली "लाडो" को..................................
जो इतनी जल्दी गयी वो सयानी  हो |


फिर छुटकी रंग -बिरंगी  दुनिया के मेले
में ग़ुम हो गयी......................................
आगे बढ़ चली वो भीड़ में ,
मन में सपने संजोये  कई ...................
 इक दिन जरूर वो गुडिया  मुझे 
मिलेगी कभी |





                                                                       


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